51 Best Moral Stories in Hindi [+Free E-book] शिक्षाप्रद कहानियां
जीवन में छोटी-छोटी कहानियों का विशेष महत्व हैं और जब वे शिक्षाप्रद मजेदार कहानियां हो, जो कुछ संदेश लिये हो तो उनका महत्व और बढ़ जाता हैं। छोटी शिक्षाप्रद कहानियां हमारे मानस पटल पर विशेष प्रभाव डालती हैं। Moral stories in Hindi बच्चों के जीवन में बदलाव लाने की ताकत रखती है। आप पंचतंत्र की अनमोल नैतिक कहानियां भी यहां पढ़ सकते हैं-
101 Panchatantra Stories in Hindi। कई बार जो बात बच्चों को हम अन्य तरीकों से नहीं समझ पाते है, वो एक छोटी सी नैतिक कहानी उन्हें आसानी से समझा जाती है।
इस पेज पर केवल 10 कहानियां ही दी गई हैं, अन्य 51 शिक्षाप्रद मजेदार कहानियां इस पेज के अंत में दिये गए PDF E-book में हैं। नीचे से PDF डाउनलोड कर अपने स्मार्टफोन या लैपटॉप पर पढ़े।
Short Moral Stories in Hindi
बच्चों के कोमल मन पर कहानियों का बहुत प्रभाव पड़ता है। वे कहानियों के चरित्रों से प्रेरणा लेते हैं तथा उनके जीवन-मूल्यों को सहज भाव से ग्रहण कर लेते हैं। यही कारण है कि पुराने समय से ही बच्चों को small moral stories in hindi for kids के द्वारा नैतिक शिक्षा देने, उन्हें जीवन-मूल्यों से परिचित कराने की परंपरा रही है।
- तीन चोर
- शिक्षा सबसे बड़ा धन
- ईमानदारी का इनाम
- शेर और लकड़हारा
- चोरी का फल
- होशियार लड़का
- ढोल वाले की मूर्खता
- मित्रों का महत्व
- गुलाब के फूल का बेटा
- झूठ कभी न बोलना!
ईमानदारी का इनाम
किसी गाँव में श्यामू नाम का किसान रहता था। स्वभाव से वह बहुत ही अच्छा था। उसका एक खेत था जो बहुत छोटा था, जिस कारण उसके बड़े परिवार की गुजर-बसर बहुत मुश्किल से ही हो पाती थी।
श्यामू अपने खेत में बहुत मन लगाकर काम करता लेकिन खेत छोटा होने के कारण काम कुछ ही घंटों में खत्म हो जाता था। उसके बाद वह खाली रहता था।
काम के बाद का खाली समय श्यामू को बिताना भारी पड़ता था। इसलिए उसने एक दिन सोचा की क्यों न इस खाली समय में गाँव के ही सेठ जी के खेत पर मज़दूरी कर लिया जाये। इससे खाली समय भी कट जाएगा और घर में पैसे की कमी भी कुछ दूर हो जायेगी।
गाँव के सेठ जी बड़े भले इंसान थे। श्यामू जब उनसे काम मांगने गया तो सेठ जी ने कहा- "तुम्हें मेरे खेत पर मज़दूरी करने की जरूरत नहीं है। आज से मैं पूरे खेत की ज़िम्मेदारी तुमको देता हूं। जो भी फ़सल होगी आधा मुझे दे देना और आधा तुम ले जाना।"
सेठ जी के इस भले व्यवहार से श्यामू बहुत खुश हुआ और अगले ही दिन उनके खेत पर काम शुरू कर दिया।
वह प्रतिदिन सुबह सबसे पहले अपने खेत का काम खत्म करता और फिर सेठ जी के खेत में काम करने चला जाता था। एक दिन दोपहर को जब श्यामू सेठजी के खेत में हल चला रहा था, उसी वक्त उसका पैर किसी सख्त चीज से टकराया। जब उसने मिट्टी हटाकर देखा तो वहाँ पर मिट्टी से बना एक छोटा मटका था, जिसके ऊपर लाल कपड़ा बंधा हुआ था। श्यामू पहले तो थोड़ा डर गया लेकिन फिर भी उसने थोड़ा साहस करते हुए मटके पर बँधा कपड़ा हटाया। जैसे ही उसने मटके के अंदर देखा, उसके आश्चर्य का ठीकाना न रहा- उसमें सोने के कई आभूषण थे।
श्यामू को अब समझ ही नहीं आ रहा था कि वह इन किमती आभूषणों क्या करे- एक ओर वह सोचता इसे किसी सुनार को बेचकर अपने घर की पैसे की कमी हमेशा के लिए खत्म कर देता हूं; वही दूसरे ही पल सोचना कि यह जमीन सेठजी की है, ये उन्हें ही सौंपना उचित होगा।
काफी देर तक उलझन में पड़े रहने के बाद वह अंत में सेठजी के घर ही गया। उसने सेठजी को सारी कहानी बताकर मटका उन्हीं के सामने रख दिया। मिट्टी का वह मटका देखकर सेठजी उसे पहचान गये और बोले - "ये मेरी दादी के आभूषण हैं। मैं कई वर्षों से इसे खोजने की कोशिश कर रहा था। मुझे पता नहीं था कि ये कहाँ गड़े हुए हैं। इन्हें अचानक खोजकर तुमने बहुत बड़ा उपकार किया है। तुम्हें इस काम के लिए कोई बड़ा इनाम तो मिलना ही चाहिए।"
"सेठ जी, मुझे आपने अपने खेत पर काम दिया, यही बहुत है। अब मुझे कोई इनाम नहीं चाहिए।" श्यामू ने सेठजी से हाथ जोड़कर आग्रह किया।
फिर सेठजी ने कहा - "श्यामू मैं जानता हूँ तुम बहुत मेहनती और ईमानदार हो; लेकिन इनाम तो तुम्हें स्वीकार करना ही होगा।" सेठजी थोड़े देर रुके और फिर कहा - "मेरे जिस खेत पर तुम काम कर रहे हो, आज से वह तुम्हारा है। तुम उसके मालिक हो।"
सेठ जी के मुंह से यह बात सुनकर श्यामू खुशी से झूम उठा। उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे। वह मन ही मन सोच रहा था कि यदि वह लालच में पड़कर अपनी ईमानदारी को भूल जाता, तो उसे इतना बड़ा इनाम नहीं मिलता।
सीख
ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है। थोड़े से लालच के लिए किसी के साथ बेइमानी नहीं करनी चाहिए।
शेर और लकड़हारा
एक लकड़हारा जंगल में लकड़ी तोड़ने गया। वहाँ किसी झाड़ी की आड़ में शेर बैठा था। लकड़हारे ने उसको नहीं देखा और वह सीधा उसके सामने चला गया।
शेर को देखते ही लकड़हारा चिल्लाकर गिर पड़ा और बेहोश हो गया। कुछ देर में जब उसको होश आया, तब उसने आँखें खोली। शेर को उसकी जगह पर चुप-चाप बैठा देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। शेर अपना पंजा बार-बार उठाता और रखता था। लकड़हारे ने देखा कि उसके पंजे में काँटा चुभा हुआ है। वह साहस करके उठा और शेर के पास जाकर उसने उसके पंजे में से काँटा निकाल दिया।
काँटा निकल जाने पर शेर वहाँ से उठा और जंगल में चला गया। लकड़हारा लकड़ी लेकर अपने घर चला आया।
कुछ दिनों के बाद राजा के शिकारियों ने उस शेर को पकड़कर पिंजड़े में बंद कर दिया। उसके थोड़े दिनों बाद उस लकड़हारे को राजा ने किसी बुरे काम के कारण मार डालने की आज्ञा दी।
राजा ने कहा कि लकड़हारे को शेर के पिंजरे में डाल दो। शेर का पेट भी भर जायेगा और हमारी आज्ञा भी पूरी हो जायेगी।
लकड़हारा बेचारा शेर के पिंजरे में ढकेल दिया गया।
राजा और उसके सब दरबारी यह तमाशा देखने के लिए पिंजड़े के पास खड़े हुए। पहले तो शेर बड़े जोर से गरज कर लकड़हारे पर झपटा। परन्तु पास आने पर जब उसने उसे पहचान लिया, तब वह लकड़हारे का हाथ चाटने लगा।
राजा और उसके सब दरबारी यह देखकर बड़े चकित हुए। राजा ने लकड़हारे को पिंजरे से बाहर निकलवा लिया और पूछा - शेर ने तुमको क्यों नहीं खाया?
लकड़हारे ने अपनी और शेर की कहानी राजा को सुनाई। राजा बहुत खुश हुआ, उसने लकड़हारे के अपराध को क्षमा कर दिया।
सीख
भलाई करने वाले को कभी न कभी उसका फल जरूर मिलता है। जैसे शेर के पंजे से कांटा निकालने के बदले में लकड़हारे की जान बच गई।
चोरी का फल
किसी गाँव में एक किसान रहता था। उसके दो बेटे और एक बेटी थी - मोहन, मदन और श्यामा। तीनों हर रोज गाँव के बाहर स्थित स्कूल में पढ़ने जाते थे। किसान अपने तीनों बच्चों को बहुत प्यार करता था। उसका सपना था कि उसके तीनों बच्चे पढ़-लिखकर अच्छे और बड़े आदमी बनें।
तीनों बच्चों को नारियल के लड्डू बहुत पसंद थे। इसलिए माँ ने घर पर ही नारियल के स्वादिष्ट लड्डू बनाकर रख दिये थे और रोज स्कूल जाते समय उन्हें एक-एक लड्डू दिया करती थी।
माँ ने तीनों बच्चों को समझाया था कि उन्हें हर रोज सिर्फ एक ही लड्डू मिलेगें, एक से ज्यादा लड्डू रोज खाना सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। माँ ने उन्हें ऐसा डराने के लिए कहा था ताकि लड्डू ज्यादा समय तक चले, कुछ ही दिनों में खत्म न हो जाये।
एक दिन घर पर कुछ मेहमान आये। उनको लड्डू देने के लिए जब माँ ने लड्डू का डिब्बा खोला तो वह दंग रह गई। उसमें से आधे से अधिक लड्डू गायब थे। माँ तुरंत समझ गई कि उसके बच्चे लड्डू चोरी करके खा रहे हैं।
माँ ने ये बात किसान को बताई। किसान को यह बात सुनकर बहुत दुख हुआ। वह इतनी मेहनत करके अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा रहा था। उसके बच्चे यदि चोरी जैसा गलत काम करना सीख रहे हैं, तो उसके लिए बड़े शर्म और दुख की बात थी।
किसान के लिए यह पता लगाना बहुत मुश्किल था कि उसका कौन-सा बच्चा लड्डू चोरी करके खा रहा है। फिर अचानक किसान को एक तरकीब सूझी। उसने अपनी पत्नी को समझाया की नारियल के लड्डू में नीम के पत्तों का रस मिला दे। किसान कि पत्नी को यह तरकीब अच्छी लगी और उसने ऐसा ही किया।
दोपहर के बाद जब तीनों बच्चे स्कूल से लौटकर घर आए, तो माँ उन्हें खाना देकर गाय को चारा डालने के लिए घर से बाहर चली गई। कुछ ही समय बाद किसान का दूसरा बेटा यानी मदन घर के मुख्य द्वार पर आया। उसने दरवाजे़ पर ही सब खाया-पिया उलट दिया। मोहन का चेहरा उतरा हुआ था और आँखों से खूब पानी बह रहा था।
तभी किसान और उसकी पत्नी भी घर के मुख्य दरवाजे पर पहुंच गए। वे दोनों समझ गए कि उनका दूसरा बेटा मोहन ही लड्डू चोरी करके खा रहा था।
माँ ने पानी से मोहन का मुँह साफ कराया और उसे घर के अंदर ले गई। किसान ने बड़े बेटे मोहन और छोटी बेटी श्यामा को मदन की करतूत बताई। उन्होंने भी पिता को बताया कि मदन हर रोज स्कूल के रास्ते में पड़ने वाले बगीचे से फल चुराकर खाता है। यह जानकर किसान और उसकी पत्नी को और दुख हुआ।
किसान ने क्रोधीत होते हुए यह कहा कि कल से मदन अब स्कूल नहीं जाएगा, वह मेरे साथ खेतों में मज़दूरों की तरह काम किया करेगा। यदि उसे चोर ही बनना है, तो उसे पढ़ाने-लिखाने से कोई फायदा नहीं है।
उधर मदन की रो-रोकर हालत खराब थी। उसको अपनी गलती का अहसास हो चुका था। उसने अपनी गलती स्वीकार कर ली। मदन ने अपने माता-पिता से माफी माँगते हुए कहा कि वह आगे कभी चोरी नहीं करेगा।
पिता ने उसे समझाते हुए कहा- "देखो बेटा, चोरी करोगे तो अपमान ही मिलेगा। यदि सम्मान चाहते हो, तो अच्छे काम करने पडे़गे। अब तुम्हें खुद फ़ैसला करना है कि तुम्हें अपमान चाहिए या सम्मान।"
मदन ने निश्चय किया कि वह अब ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे उसके माता-पिता को दुख हो या उसे अपमान मिले। उसकी प्रार्थना पर किसान ने उसे क्षमा कर दिया। इसके बाद उसने कभी चोरी नहीं की।
सीख
चोरी करना बहुत बुरा काम है। इससे व्यक्ति को हमेशा अपमानीत होना पड़ता है। चोरी कभी न करें।
होशियार लड़का
एक लड़का भेड़े चराया करता था। एक दिन वह जंगल में भेड़े चरा रहा था। इतने में एक बड़ा-सा राक्षस आया। उसे देखकर भेड़ें इधर-उधर भाग गई। कुछ भेड़ों को राक्षस उठा ले गया। बाकी भेड़ों को ढूढ़ने में लड़के का दिन भर बीत गया। शाम को वह भटकते-भटकते एक महल के सामने जा पहुंचा। उस महल में वही राक्षस रहता था। राक्षस ने उसे देखते ही मुस्कुराकर कहा - मैंने तुम्हारी सब भेड़े खाली। अब तुमको भी खा लूँगा। देखो, मैं कितना मजबूत हूँ?
लड़के ने कहा - क्या तुम पत्थर में से आग निकाल सकते हो?
राक्षस ने कहा - नहीं।
लड़के ने जेब में से एक दियासलाई निकाली और पत्थर पर घिसकर उसे जला दिया और कहा - देखो, मैं पत्थर में से आग निकाल सकता हूँ।
राक्षस को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने कहा - जंगल में आग की हर वक्त जरूरत रहती है। पत्थर में से आग निकालने की तरकीब मुझे बता दो।
लड़के ने कहा - अच्छा, बता दूंगा।
लड़का रात भर महल में रहा। सबेरे राक्षस ने कहा - चलो, बरगद का एक पेड़ उखाड़ लाए।
लड़के ने कहा - चलो।
राक्षस ने बरगद का पेड़ झुका लिया और कहा - तुम इसे पकड़कर रक्खों, मैं जड़ उखाड़ता हूँ।
लड़के ने पेड़ की एक डाल पकड़ ली। जैसे ही राक्षस ने उसे छोड़ा, वह ऊपर को उछली। साथ ही लड़का भी आकाश में दूर तक उछल गया।
लड़के ने कहा - आहा! यह बहुम अच्छा खेल है।
उसने राक्षस से कहा - क्या तुम मेरी तरह इतना ऊँचा उछल सकते हो?
राक्षस ने कहा - नहीं।
राक्षस ने पेड़ उखाड़ लिया। लड़के ने कहा - जड़ की तरफ का हिस्सा भारी है। मैं इसे उठाऊँगा।
राक्षस ने पेड़ का तना कंधे पर रक्खा। लड़का चुपके से कूदकर पेड़ के खोखले हिस्से में जा बैठा। भारी पेड़ उठाये हुए राक्षस जब अपने महल के दरवाजे पर पहुंचा, तब लड़का जमीन पर खड़ा हो गया।
राक्षस ने पेड़ को जमीन पर पटक दिया। वह थक गया था और हाॅफ रहा था। लड़के ने कहा - तुम तो थक गये हो। मैं तो नहीं थका।
राक्षस को बड़ा आश्चर्य हुआ कि लड़का नहीं थका।
राक्षस ने मन में सोचा - अगर मैं इस लड़के को नहीं मार डालूंगा तो यह मेरा मालिक बन बैठेगा।
पर लड़का बेपरवाह नहीं था।
राक्षस के घर में चमड़े की एक मसक (चमड़े का बना हुआ वह थैला जिसमें पानी भरते हैं) रक्खी हुई थी। राक्षस की आँख से बचाकर लड़के ने उसे पानी से भर लिया। और अपने सोने के बिछौने पर चादर से ढककर रख दिया। वह स्वयं दरवाजे की आड़ में चुपचाप जाकर बैठ गया।
आधी रात होने पर राक्षस उठा और धीरे-धीरे चलकर लड़के के बिछौने के पास पहुंचा। उसने समझा, लड़का सो रहा है। उसने बड़े जोर से एक घूसा मारा। मसक फूट गई और पानी उछलकर राक्षस के मुँह पर जा गिरा। राक्षस ने कहा - आहा! खून ही खून भरा था।
सबेरा होते ही लड़का मुसकुराता हुआ राक्षस के सामने पहुंचा और कहने लगा - रात को मैंने सपना देखा कि एक मक्खी ने मुझे काट लिया।
राक्षस उसकी ओर डर भरी आँखों से देखने लगा।
दोनों साथ-साथ खाने बैठे। लड़के ने गले के पास एक थैली बांध रखी थी। वह खाता भी जाता था और राक्षस की आँख से बचाकर थैली भी भरता जाता था। देखते ही देखते थैली भर गई और उसका पेट मोटा दिखाई पड़ने लगा। राक्षस बहुत डरा। लड़के ने कहा - क्या तुम इतना खा सकते हो?
राक्षस ने कहा - नहीं। तुम इतना ज्यादा कैसे खा लेते हो?
लड़के ने कहा - मैं पेट की थैली को चीर कर खाने को बाहर निकाल देता हूँ और फिर खाने लगता हूं।
यह कहकर लड़के चाकू निकाला और अपने कुरते के अंदर डालकर थैली को चीर दिया। उसके अंदर का खाना बाहर आ गया। यह देखकर राक्षस बहुत खुश हुआ। उसने कहा - वाह! यह तो बड़ा अच्छा खेल है।
उसने भी एक बड़ा-सा चाकू हाथ में लिया और पेट में भोंक लिया। पेट फटते ही वह धडाम से गिर पड़ा और मर गया। लड़का उस महल का मालिक हो गया और उसमें उसने बड़ा खजाना पाया।
सीख
हर परिस्थिति में केवल बल से नहीं बल्कि बुद्धि से भी काम लेना चाहिए तथा दुष्टों के साथ हमेशा चतुराई से रहना चाहिए।
ढोल वाले की मूर्खता
एक बार ढोलवादक बालमोहन और उसका बेटा बलराम नारायणपुर गाँव के एक विवाह समारोह में गए। विवाह समारोह के खत्म होने पर दोनों पिता-पुत्र को ढेर सारे पैसे और कुछ सोने-चाँदी के आभूषण इनाम के रुप में मिले। इनाम लेकर दोनों खुशी-खुशी अपने गाँव लौटने लगे।
दोनों एक छोटे जंगल को पार कर रहे थे कि बेटा बोला, "पिताजी, आज तो बहुत आनंद आ गया। आज तो मैंने जितना सोचा था उससे कई गुना ज्यादा कमाई हो गई।"
इस पर पिता ने कहा खुश होकर कहा - "बलराम तुमने आज बहुत मन लगाकर ढोल बजाया था, यही कारण है कि आज समारोह में हम पर पैसे की वर्षा हुई है।"
जब दोनों जंगल के बीच रास्ते में पहुंचे तब बालमोहन के बेटे ने अचानक तेज आवाज में ढोल बजाना शुरू कर दिया।
बालमोहन ने कहा - "अरे! बलराम तुम अभी यह क्या कर रहे हो?"
"तुम नहीं समझोगे पिता जी आज मैं बहुत खुश हूं, मेरी इच्छा बार-बार जोर-जोर से ढोल बजाने की हो रही है।"
"लेकिन इतनी तेज आवाज में न बजाओ। इस जंगल में डकैतों और लुटेरों का समूह रहता है। ढोल की तेल आवाज़ सुनकर वे यही आ जाएंगे।" बालमोहन ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा।
"आप बिल्कुल परेशान न हो पिता जी, मैं अपने ढोल की तेज आवाज से उन्हें डरा करा भगा दूंगा।" बलराम ने हँसते हुए कहा।
उधर जंगल में छिप कर बैठे एक लुटेरों के समूह ने ढोल की आवाज सुनी तो उन्हें लगा, कोई राजा अपने दल के साथ शिकार खेलने आया है।
कुछ मिनट बाद बालमोहन बोला, "बलराम, अब तुम मान भी जाओ। जो धुन तुम लगातार बजा रहे हो, यह केवल एक ही बार बजाई जाती है।"
लेकिन बलराम कहां मानने वाला था, वह लगातार ढोल बजाता ही रहा।
"तुरंत ढोल बजाना बंद करो! तुम समझते क्यों नहीं? यदि लुटेरों ने ढोल की आवाज सुन ली तो...?" गुस्साते हुए बालमोहन ने बलराम से कहा।
"पिता जी, आप बेवजह ही इतना डर रहे हैं। मैं अपने ढोल की प्रचंड ध्वनि से उन्हें इतना भयभीत कर दूंगा वह हमारी तरफ आने के बारे में सोचेंगे भी नहीं।" ऐसा कहकर बलराम ने दुबारा ढोल बजाना शुरू कर दिया।
उधर लुटेरों के समूह के सरदार को फिर ढोल की आवाज़ सुनाई दी, उसने आवाज सुनते ही अपने साथियों से कहा, "साथियों, फिर वही धुन? इसका मतलब यहां कोई राजा शिकार खेलने नहीं आया।"
"सरदार, मुझे तो लग रहा किसी ने नया-नया ढोल बजाना सिखा है और खूब धन कमा कर किसी समारोह से वापस जा रहा है।" समूह के एक सदस्य ने अपनी राय बताई।
"तुम ठीक कह रहे हो। चलो, हम इस ढोलवादक पर धावा बोल देते हैं।" लुटेरों के सरदार ने अपने साथियों को आदेश देते हुए कहा।
मात्र कुछ ही समय में लुटेरे ढोलवादक पिता-पुत्र के पास पहुंच गए। उन दोनों के पास मोटी-मोटी गठरियां देखकर लुटेरों का सरदार समझ गया कि इन्होंने आज ढेर सारा अनाज और धन प्राप्त किया है।
"इन दोनों से तुरंत छीन लो ये गठरियां।" सरदार ने अपने साथियों का आदेश दिया।
लुटेरों ने उन दोनों से उनके पास जो भी समान था सब छीन लिया और उन्हें डंडे से मार कर वहां से भगा दिया।
"मैंने तुम्हें कई बार-बार ढोल बजाने से मना किया था, पर तुमने मेरी बात बिल्कुल नहीं मानी। तुमने आज खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है।" बालमोहन ने अपने सिर पर हाथ पटकते हुए अपने बेटे से कहा।
"पिता जी, मुझे माफ कर दो। आज अधिक पैसे कमाने की खुशी में मुझसे बड़ी भूल हो गई है। मैं समझ गया कि बड़ों का कहा न मानने का अंजाम हमेशा बुरा ही होता है।"
फिर दोनों पिता-पुत्र मायूस होकर पछताते हुये अपने गाँव की ओर चल पड़े।
सीख
बड़े-बुजुर्ग जो कुछ कहते या सलाह देते है उसमें भलाई छिपी होती है। वे जो भी कहते हैं अपने अनुभव से कहते है। बलराम के पिता जंगल में ढोल बजाने के अंजाम को जानते थे, यही कारण है कि उन्होंने बलराम को ढोल बजाने से बिल्कुल मना किया था। जो अपने बड़े-बुजुर्गों की बात को नजरअंदाज करते है वे बाद में खुब पछताते हैं।
मित्रों का महत्व
एक छोटी नदी के किनारे एक पेड़ पर एक तोता रहता था। कुछ समय बाद एक मैना भी वही पास के एक दूसरे पेड़ पर घोंसला बनाकर रहने लगी। धीरे-धीरे तोता और मैना में बातचीत होने लगी। कुछ समय बाद तोते ने मैना से शादी करने का निवेदन किया। इस पर मैना ने कहा - "यहाँ हम किसी को नहीं जानते। तुम पहले कुछ मित्र तो बनाओ, क्योंकि जब भी कोई मुसीबत या परेशानी आती है तो मित्रों का ही सहारा होता है।"
मैना की यह बात सुनकर तोता मित्र बनाने के लिए सबसे पहले नदी किनारे रह रहे कछुए के पास गया। उसने कछुए को अपना मित्र बना लिया। उसके बाद तोता बिलाव के पास गया। उसके साथ भी तोते की मित्रता हो गई और उसने तोते से बुरे समय में मदद का वादा भी किया।
कछुए और बिलाव से मित्रता करने के बाद तोता मैना के पास आया और उससे शादी कर ली। वे दोनों नदी के तट पर जिस जगह कछुवा रहता था उसके पास स्थित बरगद के पेड़ पर घोंसला बनाकर एक साथ रहने लगे। कुछ महीनों बाद मैना ने दो बहुत सुंदर बच्चों को जन्म दिया। तोता और मैना बहुत खुश थे।
एक दिन दो शिकारी नदी के पास स्थिति जंगल में शिकार खेलने आए, लेकिन उनकी किस्मत खराब थी, उनके हाथ कोई शिकार नहीं लगा। शिकार की खोज करते-करते वे इतने थक गए थे कि वे आराम करने के लिए बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गए। अचानक दोनों शिकारियों की नजर पेड़ पर मैना के दोनों बच्चों पर जा पड़ी।
"पूरा दिन शिकार की खोज में ही निकल गया। क्यों न भूख मिटाने के लिए मैना के बच्चों का ही शिकार किया जाए।" एक शिकारी ने दूसरे शिकारी की ओर देखते हुये कहा।
"बात तो तुम सही कह रहे हो। मेरे पेट में भी चूहे दौड़ रहे हैं। लेकिन अभी अंधेरा हो चुका है। क्यों न पहले आग जला लिया जाए।" दूसरे शिकारी ने कहा।
दोनों शिकारियों ने तुरंत कुछ सूखी लकड़ियां इकट्ठा कर आग जलाया।
पेड़ पर बैठे तोते ने जब दोनों शिकारियों की बातचीत सुनी तो वह घबरा गया। वह बिना देर किये बिलाव के पास पहुंचा और उससे सारी बात बताई।
बिलाव ने उसे दिलासा दिया और तोते के साथ चल पड़ा।
बिलाव और तोता जब बरगद के पेड़ के पास पहुंचे तो देखा कि एक शिकारी पेड़ पर धीरे-धीरे चढ़ा जा रहा है।
बिलाव बड़ा बुद्धिमान था। उसने तुरंत नदी में डुबकी लागई और शिकारियों द्वारा जलाये गए आग पर तुरंत पानी का छिड़काव कर दिया। उसने इस तरह चार-पाँच बार डुबकी लगाई और आग को पूरी तरह बुझा दिया।
अंधेरा हो जाने के कारण जो शिकारी पेड़ पर चढ़ रहा था वह नीचे उतर आया। शिकारियों ने फिर एक बार आग जलाई, लेकिन बिलाव भी कहा मानने वाला था। उसने फिर पानी से आग को बुझा दिया। आग जलाने और बुझाने यह क्रम कई बार चला।
अब बिलाव भी बहुत थक-हार चुका था।
अब तोता भागते-भागते अपने मित्र कछुए के पास पहुंचा और उसे अब तक का सारा हाल कह सुनाया तो कुछवा भी मदद करने के लिए तैयार हो गया।
कछुआ बिना डरे शिकारियों के सामने जाकर खड़ा हो गया।
दोनों शिकारियों ने इतना बड़ा कछुवा देखा तो उनके मन में लालच के लडडू फुटने लगे। दोनों को लगा कि उन्हें अब कई दिनों तक शिकार करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। फिर उन्होंने अपने ऊपर के पहने हुए कपड़ों को फाड़ कर उनसे कछुवे को बांधने लगे।
कछुआ बहुत ताकतवर और आकार में बहुत बड़ा था। उन्होंने जैसे ही कछुवे को कपड़े से बांधा उसने दोनों को पानी के अंदर खींचना शुरू कर दिया।
दोनों गिरते-लुढ़कते नदी के पानी में खिंचने लगे। तभी अचानक एक शिकारी चिल्ला कर बोला, "अगर जिंदा रहना चाहते हो तो कमर के नीचे पहने हुए कपड़े को खोल दो।" यह कहकर दोनों ने अपने कमर नीचे के कपड़े को भी खोल दिया। इस तरह दोनों शिकारी मरते-मरते बचे। दोनों शिकारी भूखे पेट ही बिना शिकार घर लौट गए।
इस तरह तोते के मित्रों की वजह से मैना के बच्चों की जान बच गई।
सीख
जीवन में कुछ अच्छे मित्रों का होना बहुत जरूरी है। जब भी कभी मूसीबत का समय आता है तब मित्र ही मदद करते हैं। ऐसा व्यक्ति जो आपका बहुत अच्छा मित्र होने का दावा तो करता है, लेकिन मुसीबत या समस्या आने पर आपसे किनारा कर लेता है वह कभी आपका मित्र नहीं हो सकता।
गुलाब के फूल का बेटा
एक दुष्ट जादूगरनी थी। उसके घर के सामने एक बड़ा-सा बाग था। बाग में बहुत सारे फूल लगे हुए थे।
एक महिला उस घर के आगे से होकर जा रही थी। उसने सुंदर गुलाब देखे। उसने सोचा कि मंदिर में चढ़ाने के लिए एक फूल तोड़ लिया जाय। लेकिन जैसे ही उसने फूल तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया, जादूगरनी आ गई। वह चिल्लाकर बोली, 'रूक जा मूर्ख महिला। तूने मेरे फूल को छूआ है। यहाँ किसी को भी मेरे फूल छूने की आज्ञा नहीं है। तेरी इस गलती की सजा तुझे जरूर मिलेगी। मैं तुझे भी गुलाब का फूल बनाती हूं।'
यह कहकर जादूगरनी ने इशारा किया। वह महिला घबराकर रोने लगी। वह बोली, 'मुझे माफ़ कर दो। मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई। मेरे ऊपर दया करो। मुझे फूल मत बनाओ।'
उसका रोना सुनकर जादूगरनी ने कहा, 'मैंने एक बार जो कह दिया, वह तो होकर ही रहेगा। मैं इतना कर सकती हूँ कि तेरी सज़ा थोड़ी कम हो जाए। आज पूरे दिन तू इस क्यारी में रहेगी और रात होने पर ही अपने घर जा सकेगी। लेकिन सुबह होते ही तुझे यहाँ वापिस आना होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो तू अपने घर पर ही एक फूल बन जाएगी। इसलिए सुबह होते ही यहाँ आ जाना। हाँ, अगर तुझे किसी ने यहाँ के फूलों में से पहचान लिया तो मेरा जादू टूट जाएगा और तू हमेशा के लिए जा सकेगी।'
जदूगरनी के इतना कहते ही वह महिला गुलाब का फूल बनकर एक पौधे से जुड़ गई। रात होते ही वह वापस अपने रूप में आ गई। दिन-भर धूप में रहने से बेचारी परेशान थी। वह देर रात अपने घर पहुँची। घर पर सब परेशान थे।
उसने पूरी कहानी अपने बेटे को सुनाई। उसके बेटे ने कहा - 'माँ आप सुबह वहाँ वापस चली जाना। मैं आपके कुछ देर बाद आऊँगा और आपको पहचान लूँगा। आप बिल्कुल चिंता मत करो।'
सुबह को सूरज निकलने से भी पहले महिला जादूगरनी के बाग़ में जाकर फूल बन गई। तभी उसका बेटा वहाँ आया। उसने देखा वहाँ गुलाब के बहुत सारे पौधे थे। उन पौधों पर सैकड़ों फूल लगे हुए थे। उसने एक-एक फूल को ध्यान से देखना शुरू किया। काफी सारे फूल देखने के बाद उसने एक फूल चुना और बोला, 'यही मेरी माँ है।'
इतना कहते ही उसकी माँ पर किया गया जादू टूट गया। वह अपने रूप में वापिस आ गई। खुशी में उसने अपने बेटे को गले से लगा लिया। उसने बेटे से पूछा, 'एक बात बता बेटा। तूने मुझे पहचाना कैसे?' बेटे ने कहा, 'सीधी बात है माँ। जितने भी फूल रात-भर यहाँ रहे, उन सभी पर ओस की बूँदें थीं। लेकिन आप तो रात को घर पर थीं, इसलिए आप बिल्कुल सूखी हुई थीं। मैंने आपको आसानी से पहचान लिया।'
अपने बेटे की बुद्धिमानी देखकर माँ को बहुत खुशी हुई। जादूगरनी ने जब माँ और बेटे का प्यार देखा तो उसको इतना अच्छा लगा कि उसने सबको परेशान करना छोड़ दिया। अब वह दुष्ट जादूगरनी नहीं थीं, बल्कि एक अच्छी और नेक जादूगरनी बन गई थी।
झूठ कभी न बोलना!
बाजार में खूब भीड़ थी। किसान, दुकानदार, व्यापारी, सब थे। ढेर सारी बैलगाड़ियाँ, घोड़ागाड़ियाँ, ऊँट गाड़ियाँ, सब थीं वहाँ, राजा भी वहाँ आने वाले थे।
अस्तबल में एक घोड़े के छोटे से बच्चे ने जन्म लिया था। घोड़े का बच्चा उठकर चलने की कोशिश कर रहा था। जैसे ही उसने चलना सीखा, अस्तबल के बाहर भागा। लेकिन बाहर की भीड़ को देखकर वह घबरा गया। इतना शोर-शराबा था बाहर कि वह डरकर एक गाय और बैल के बीच जाकर छिप गया। घोड़े का मालिक उसे ढूँढ़ता हुआ वहाँ आया। उसने देखा कि उसका प्यारा सा घोड़े का बच्च गाय-बैल के बीच खड़ा है। उसने बच्चे को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया। लेकिन तभी गाय का मालिक वहाँ आ गया। वह बोला, 'यह क्या कर रहे हो। इसे कहाँ ले जा रहे हो। यह मेरा है?'
घोड़ेवाला बोला, "क्या कह रहे हो? यह तो घोड़े का बच्चा है। मेरे घोड़े का बच्चा है यह।"
"नहीं यह बच्चा तो मेरी गाय का है। देखो तो कितने प्यार से खड़ा है उसके पास।" गाय का मालिक बोला।
छोनों में झगड़ा होने लगा। तभी राजा वहाँ आ गए। गाय का मालिक और घोड़े का मालिक राजा के पास आए और अपनी-अपनी बात बताई। राजा ने दोनों की बात सुनकर कहा, "क्योंकि यह बच्चा गाय और बैल के बीच अपने आपको सुरक्षित महसूस कर रहा था, इसलिए वही इसके माता-पिता हैं।"
राजा की आज्ञा घोड़े के मालिक को माननी ही पड़ी। उसने घोड़े का बच्चा गाय वाले को दे दिया।
कुछ दिनों बाद राजा अपनी बग्घी में सवार होकर कहीं जा रहे थे। उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति बीच सड़क पर मछली पकड़ने का जाल बिछाकर बैठा हुआ था। राजा ने सोचा कि कोई पागल व्यक्ति होगा।
उन्होंने सड़क के किनारे पर बग्घी रूकवाई और उस व्यक्ति को अपने पास बुलाया। राजा ने पूछा, "यह क्या कर रहे हो? जाल को सड़क के बीचोंबीच क्यों बिछाया हुआ है?"
वह व्यक्ति बोला, "महाराज, मैं मछलियाँ पकड़ रहा हूँ।"
"मछलियाँ? सड़क पर मछलियाँ? क्या तुम पागल हो गए हो?" राजा ने पूछा। वह व्यक्ति आदर के साथ बोला, "महाराज यदि गाय और बैल एक घोड़े के बच्चे को जन्म दे सकते हैं तो फिर मैं सड़क पर मछलियाँ क्यों नहीं पकड़ सकता?"
महाराज ने ध्यान से देखा। अब वे उस व्यक्ति को पहचाने। यह और कोई नहीं घोड़े का वही मालिक था, जो उन्हें बाज़ार में मिला था।
उन्होंने तुरंत अपने सैनिकों को आज्ञा दी, "जाओ, उस गाय-बैल के मालिक को बुलाकर लाओ .... तुरंत।"
गाय के मालिक को घोड़े का बच्चा वापिस करना पड़ा। झूठ बोलने के लिए उसे सज़ा भी दी गई। उस दिन से एक महीने तक वह अपनी गाय का ताज़ा दूध घोड़े के मालिक के घर भेजता था - वह भी बिल्कुल मुफ्त!
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