दोस्तों, पूर्व में आपने यहां - 10 Short Moral Stories in Hindi यानी 10 प्रेरक शिक्षाप्रद कहानियां पढ़ी। यहां फिर दो शिक्षाप्रद कहानियां दी जा रही हैं, उम्मीद है आपको पसंद आएगी।
बहुत दिनों की बात है। किसी शहर में रमन, घीसा और राका तीन चोर रहते थे। तीनों को थोड़ा-थोड़ा विद्या का ज्ञान था। तीनों चोरों को विधा का ज्ञान प्राप्त होने के कारण बहुत घमण्ड था। विद्या द्वारा तीनों चोर शहर में बड़े-बड़े लोहे की तिजोरियों को तोड़ देते थे और बैंकों को लूट लिया करते थे। इस तरह तीनों चोरों ने शहर के लोगों की नाक में दम कर रखा था।
एक बार तीनों चोरों ने एक बड़े बैंक में डकैती करके सारा माल उड़ा दिया। तब पुलिस को खबर हुई तो तीनों चोरों को पकड़ने के लिए तलाश करने लगी। मगर तीनों चोर पास ही के एक घने जंगल में भाग गए।
तीनों चोरों ने देखा कि जंगल में बहुत-सी हड्डियां बिखरी पड़ी हैं। रमन ने अनुमान लगाकर कहा- "ये तो किसी शेर की हड्डियां हैं। मैं चाहूं तो सभी हड्डियों को अपनी विद्या के ज्ञान द्वारा जोड़ सकता हूं।" घीसा को भी विद्या का घमंड था सो, वह बोला - "अगर ये शेर की हड्डियां हैं तो मैं इनको अपनी विधा द्वारा शेर की खाल तैयार कर उसमें डाल सकता हूं।" रमन और घीसा की बात सुनकर राका का भी घमण्ड उमड़ पड़ा और उसने कहा - "तुम दोनों इतना काम कर सकते हो तो मैं भी अपनी विद्या द्वारा इसमें प्राण डाल सकता हूं।"
तीनों चोर अपनी विद्या का प्रयोग करने लगे। कुछ देर बाद रमन ने सारी हड्डियों को जोड़ दिया और घीसा ने शेर की हुबहू जान जान डाल दी। थोड़ी देर में तीनों चोर सामने एक जीवित भयानक शेर को देखकर थर-थर कांपने लगे। मगर शेर के पेट में तो एक दाना नहीं था। वह भूख के मारे गरजता हुआ तीनों चोरों पर हमला कर बैठा और मारकर खा गया। शेर मस्त होकर घने जंगल की ओर चल दिया।
कहानी से शिक्षा
दोस्तों, इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि कभी घमण्ड नहीं करना चाहिए। घमण्डी को हमेशा दुख का ही सामना करना पड़ता है। यदि तीनों चोर अपनी विद्या का घमण्ड न करते तो उन्हें जान से हाथ न धोने पड़ते। हमें अपनी विद्या का प्रयोग सोच-समझकर करना चाहिए।
अनोखा बंटवारा
एक जंगल में एक गीदड़ और गीदड़ी बड़े ही प्यार से रहते थे।
गीदड़ अपनी गीदड़ी को बहुत चाहता था। वह जो भी फरमाइश करती, गीदड़ उसे यथासम्भव पूरा करता था।
एक बार गीदड़ ने गीदड़ी से कहा - "प्रिय! आज तो मेरा मछली खाने का मन कर रहा है। क्या तुम व्यवस्था कर सकते हो?"
"यदि मन कर रहा है तो मैं आज ही तुम्हें मछली खिलाऊंगा प्रिये! यह कौन-सी बड़ी बात है।"
यह कहकर गीदड़ चल दिया।
नदी की ओर जाते समय वह सोच रहा था कि मैंने पत्नी से कह तो दिया कि मछली खिलाऊंगा - मगर मुझे तो मछली का शिकार भी करना नहीं आता। अपनी पत्नी की मछली खाने की इच्छा आज कैसे पूर्ण करूं?
यही सोचते-सोचते गीदड़ नदी किनारे जा पहुंचा और एक ओर बैठकर नदी में मचलती मछलियों को ललचाई नजरों से देखने लगा। एक बार तो उसका मन चाहा कि नदी में कूद पड़े और पलक झपकते ही मछलियों का शिकार कर ले। लेकिन दूर-दूर तक फैले नदी के पानी और उसके प्रवाह को देखकर उसकी हवा खराब हो रही थी।
पानी में उतरने की बात सोचने से उसे इतना डर लगा कि वह नदी किनारे से काफी दूर एक वृक्ष के नीचे आकर बैठ गया और कोई युक्ति सोचने लगा। ऐसी युक्ति कि मछली भी मिल जाए और जान को कोई खतरा भी न हो।
तभी उसकी नजर एक ऊदबिलाव पर पड़ी जो अपने एक साथी के साथ एक बड़ी मछली का शिकार करके उसे किनारे पर ला रहा था।
एक ऊदबिलाव ने दूसरे से कहा- "यह तो बहुत भारी मछली है - हमारा तो कई दिन तक गुजारा हो जाएगा।"
"हां भाई। ऐसी भारी मछली तो बड़े दिनों के बाद हाथ लगी है।"
उस मछली को देखकर गीदड़ के मुंह में पानी भर आया। वह सोचने लगा कि क्यों न मैं इनसे यह मछली हथिया लूं? लेकिन किस तरह? सीधी तरह से मांगने पर तो वे मछली देने से रहे।
बात तो बन सकती है, अगर थोड़ा चतुराई से काम लूं।
तब तक ऊदबिलाव मछली को घसीटकर किसी तरह किनारे पर ले आए थे।
तभी एक बोला - "सुनो मित्र! यह मछली तो एक है और हम दो- अब इसका बंटवारा कैसे किया जाए?"
"क्यों न हम खुद ही बंटवारा कर लें।" एक बोला।
"देख भाई!" दूसरा बोला - "यदि हम खुद ही बंटवारा करेंगे तो दोनों के दिल में यह खटक रेहगी कि दूसरे के पास ज्यादा चली गई। इसीलिए मेरी राय तो यह है कि हमें किसी तीसरे से इसका बंटवारा करवा लेना चाहिए।"
गीदड़ ने जब यह बात सुनी तो मन-ही-मन बहुत खुश हुआ और किसी बुजुर्ग की भांति आगे बढ़कर बोला - "अरे भाई लोगो। क्या सोच रहे हो?"
"सोच क्या रहे हैं भाई।" एक उदबिलाव बोला - "बात दरअसल यह है कि हमने इस मछली का शिकार किया है- यह मछली तो एक है और हम दो हैं - हम सोच रहे हैं कि इसका बंटवारा कैसे करें?"
"बंटवारा तो कोई तीसरा ही कर सकता है भइया।" दूसरा ऊदबिलाव बोला।
"ठीक कहते हो भइया - देखो, अगर तुम ठीक समझो तो मैं तुम दोनों के बीच इस मछली का बंटवारा कर दूं- अपना तो काम ही दूसरों के फैसले करवाना है-कहो तो तुम्हारा भी झगड़ा खत्म करवा दूं। मैं तो यूं भी दूसरों को मुश्किल में पड़ा देख नहीं पाता।" गीदड़ अब अपने रंग में आने लगा था।
"ठीक है भइया- अगर इसे एतराज न हो तो मुझे तो कोई एतराज नहीं है।"
"मुझे भी कोई एतराज नहीं है भइया।"
"वाह-वाह, मित्रता हो तो ऐसी-किसी ने ठीक ही कहा है कि - 'एक ने कही, दूसरे ने मानी, कहें कबीर दोनों ज्ञानी।' राजी-राजी तो बड़ी-बड़ी समस्याएं हल हो जाती हैं - और भोजन तो यूं भी सबको मिल-बांटकर खाना चाहिए - एक-दूसरे पर विश्वास करना चाहिए- प्रेम के सिवा इस संसार में रखा ही क्या है- तुम दोनों यहीं मेरा इंतजार करो, मैं अभी मछली काटने को कोई औजार दूंढ़कर लाता हूं, ताकि हिसाब से बंटवारा किया जा सके।"
"हां-हां भइया, जाओ। हम यहीं बैठकर तुम्हारा इन्तजार करते हैं।"
गीदड़ ने नदी की ओर आते वक्त एक किसान को देखा था जो अपने खेत के किनारे चारपाई पर लेटा फसल की रखवाली कर रहा था। उसके पास ही चारपाई पर एक लाठी और दरांती रखी थी।
भागता-भागता गीदड़ वहीं पहुंचा। किसान सो रहा था। गीदड़ ने चुपके से उसकी दरांती उठाई और वापस चल दिया।
"वाह! मिल गया औजार- अब बन जाएगा अपना भी काम।" गीदड़ बोला।
गीदड़ दरांती लेकर उन ऊदबिलावों के पास आ गया।
"आओ भाई! अब करता हूं मछली का बंटवारा अब तुम्हें कोई शिकायत नहीं रहेगी कि किसे कम हिस्सा मिला और किसे ज्यादा।"
गीदड़ ने मछली के तीन टुकड़े किए। पहले सिर अलग किया, फिर पूंछ अलग की।
"लो भाई! तुम सिर ले लो।" एक को सिर का हिस्सा देकर दूसरा पूंछ वाला हिस्सा उसने दूसरे की ओर बढ़ा दिया - "लो भाई। तुम यह ले लो।"
दोनों ने अपना-अपना हिस्सा अपने कब्जे में लिया, फिर तीसरे हिस्से की ओर देखने लगे। दोनों ही सोच रहे थे कि अब तीसरे हिस्से का बंटवारा कैसे होगा। वे सोच रहे थे कि गीदड़ उस बीच के तीसरे हिस्से के भी दो बराबर टुकड़े करके दोनों में बांट देगा।
लेकिन गीदड़ ने तीसरा हिस्सा अपने कब्जे में ले लिया।
"भइया! क्या इस तीसरे हिस्से का बंटवारा नहीं करोगे?"
"इसका बंटवारा कैसा भइया।" आंखें तरेर कर गीदड़ बोला - "यह तो मेरी मजदूरी है- क्या मेरी मेहनत की मजदूरी नहीं दोगे? परिश्रम का फल तो सभी को मिलना चाहिए - आखिर मैं भी तुम्हारा साथी हूं।"
यह कहते हुए गीदड़ ने बीच वाला टुकड़ा मुंह में दबाया और चलता बना। दोनों ऊदबिलाव टुकर-टुकुर उसे जाते देखते रहे। और जब उन्हें सच्चाई का बोध हुआ तो दोनों ही अपना सिर पीटते रह गए।
"भइया! अगर हम आपस में ही बंटवारा कर लेते तो अच्छा था - बीच का अच्छा हिस्सा तो वो ले गया और यह पूंछ और सिर हमें दे गया।"
"किसी ने ठीक ही कहा है भइया कि आपसी फूट का लाभ कोई तीसरा ही उठाता है- चलो, आज अक्ल आ गई कि थोड़ा कम-ज्यादा खा लेंगे, मगर किसी तीसरे को अपने बीच में नहीं आने देंगे।"