प्रत्येक देश के निवासी अपने-अपने देश को सबसे अच्छा देश मानते हैं। क्योंकि अपने देश से, उसकी सीमाओं से, उसकी मिट्टी से, वहाँ के निवासियों के प्रति स्वाभाविक प्यार एवं लगाव होता है। लेकिन प्रकृति की गोद में बसे सभी देशों की भौगोलिक स्थिति अलग-अलग होती है और इस स्थिति के कारण देश की ऋतुएँ भी प्रभावित होती हैं और अन्य बातों पर भी उसका स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। प्रकृति की गोद में बसा हमारा देश अनेक कारणों से विश्व के अन्य देशों से भिन्न भी है और सलोना भी। इस देश के वैविध्य ने संस्कृति की मूल धारा को एक अखंड रूप में रखा है, लेकिन दूसरी ओर इसे अनुपम स्वरूप दिया है। इसके पर्वत, पठार, मैदान, नदियाँ, घने-घने जंगल, रेगिस्तान और सागर इसके वैविध्य के प्रमाण हैं। उत्तर में इसके हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएँ हैं और दक्षिण में विशाल सागर इसके चरणों को धोता है। इस विविधता को और भी आकर्षक बनाती हैं इसकी ऋतुएँ।
ऋतु-चक्र
प्रमुख रूप से भारत में ग्रीष्म, वर्षा एवं शरद् ऋतु मानी जाती हैं। लेकिन ग्रीष्म एवं शरद् ऋतुओं में कभी प्रचंड गरमी एवं जाड़ा पड़ता है तो कभी हल्का। इसी प्रकार वर्षा कुछ महीनों में हल्के रूप में बरसती है, तो कभी मूसलाधार रूप में होता है। अतः यहाँ षट् ऋतु-चक्र बन जाता है। यह ऋतु-चक्र पृथ्वी की वार्षिक गति का परिणाम होता है। ऋतुओं की यह विविधता इस रूप में अन्य देशों में देखने को नहीं मिलती है। ये छः ऋतुएँ हैं - ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, हेमंत शिशिर और वसंत। छः ऋतुओं में प्रत्येक ऋतु का चक्र दो-दो महीने का बन जाता है। वैशाख और जेठ के महीने ग्रीष्म ऋतु के होते हैं। आषाढ़ और सावन के महीनों में वर्षा ऋतु होती है। भाद्र और आश्विन के दो महीने शरद् ऋतु के होते हैं। हेमंत का समय कार्तिक और अगहन (मार्गशीर्ष) के महीनों का होता है। शिशिर ऋतु पूस (पौष) और माघ के महीने में उतर आती है, जबकि वसंत का साम्राज्य फाल्गुन और चैत्र के महीनों में होता है।
ऋतुओं का यह चक्र फसल, वन, पशु-पक्षियों और भारतीयों को प्रत्येक रूप में प्रभावित करता है। वस्त्र पहनने से लेकर भोजन और देशाटन भी इससे प्रभावित होता है। इस ऋतु की आश्चर्यचकित करने वाली एक अन्य विशेषता भी है। कभी राजस्थान की मरूभूमि जल की बूँद के लिए तरसती है तो चिरापूँजी में वर्षा की झड़ी रूकने का नाम ही नहीं लेती है। जब भारत का दक्षिण भाग गरम रहता है तो उत्तरी भाग शीत से ठिठुर जाता है। कई प्रांत कभी प्रचंड लू में तपने लगते हैं तो दूसरे प्रांतों में पानी को बर्फ में जमा देने वाली ठंड पड़ती है। ऋतुओं का यह चक्र एक ही प्रकार की अनुभूति से बचाता है और बेचैनी के क्षणों को फिर से परिवर्तित कर देता है। कभी धरती तपने लगती है, कभी वर्षा की झड़ी में नहाने लगती है, कभी बर्फ़ की श्वेत चादर ओढ़ लेती है तो कभी वसंत की मादक-मोहक रंगों से सजी धजी नवयौवना बनकर खिलखिलाती है।
ऋतुओं का वर्णन
इन छः ऋतुओं में वसंत को ऋतुराज कहा जाता है। वसंत धरती पर हमारे देश में अपना मोहक-मादक रूप फाल्गुन और चैत्र के महीनों में बिखेरता है। शिशिर और पतझड़ जब अपनी शक्ति से पेड़-पौधों की हरीतिमा को छीन लेते हैं और उन्हें विरक्त साधुओं की भाँति नग्न कर देते हैं तो ऋतुराज का कोमल हृदय मानों द्रवित हो उठता है और ममता भरे हाथों से प्रकृति के रूप को सँवारने लगता है। प्रकृति का कण-कण यौवन में भरकर थिरकने लगता है। सुप्त कलियाँ आँखें खोलने लगती हैं और कोंपलें मंद-मंद मुस्कुराने लगती हैं। फूलों का रंगमय संसार अलौकिक छटा बिखेरता है। शीतल मंद-सुगंधित पवन से रक्त का संचार ही नहीं बढ़ता है, अपितु मन भी हर्षित हो जाता है। शरीर में नई स्फूर्ति का संचार होता है। सरसों की पीली चुनरियाँ उड़ने लगती हैं। अनार, कचनार, गेंदा, गुलाब, मालती और चमेली मानों मादक नृत्य में डूब जाती हैं। डालियाँ फूलों के भार से दब जाती हैं, झुक जाती हैं। भौंरों का संसार मधुर गुंजार करने लगता है। डालियाँ फूलों के भार से दब जाती हैं, झुक जाती हैं। भौंरों का संसार मधुर गुंजार करने लगता है। कोयल की कूक तान देती है और मोर नृत्य में डूब जाते हैं।
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इस मादक वसंत में प्रकृति बहुत उदार होकर अपना खज़ाना लुटाती है। वातावरण में न अधिक गरमी होती है और न अधिक सरदी। वसंत पंचमी को लोग त्योहार के रूप में मानते हैं। अपने सौंदर्य, ऐश्वर्य और वैभव की छटा से ऋतुराज महंत बन जाते हैं।
ग्रीष्म ऋतु (Grishma Ritu)
वैसाख और जेठ के महीने गरमी की ऋतु के होते हैं, गरमी असह्य हो जाती है। प्रकृति का सँवारा रूप भीषण ताप से झुलस जाता है। भौगोलिक विशेषता के कारण भारत की जलवायु गरम मानी जाती है। ग्रीष्म ऋतु में दिन बड़े होते हैं और रातें छोटी होती हैं। ग्रीष्म ऋतु में किसानों को भी खेती के कार्य से प्रायः अवकाश मिल जाता है।
ग्रीष्म में लू चलती है और अनेक प्रकार के संक्रामक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। बेल नामक फल इस ऋतु में ही होता है, जिसे लोग अधिकतर खाते हैं, क्योंकि इससे गरमी का असर कम होता है। अन्य विशेष फलों में इस समय आम, जामुन, खीरे, तरबूज़ तथा ककड़ी और खरबूजे होते हैं।
ग्रीष्म ऋतु में झुलसती गरमी से धरती और लोग जब व्याकुल हो जाते हैं, तो इसके बाद धरती की प्यास बुझाने के लिए वर्षा ऋतु का आगमन होता है।
वर्षा ऋतु (Varsha Ritu)
आषाढ़-सावन के महीने में वर्षा ऋतु की झड़ियाँ और चमचमाती बूँदें धरती पर उतर आती हैं और किसान का मन मयूर तो नाचता ही है, आकाश में छाई काली घटाओं को देखकर जंगल में मोर भी स्वयं नाच उठता है। किसान के लिए वर्षा ऋतु जीवनदायिनी होती है।
इस समय झूले पड़ जाते हैं और युवतियाँ झूले झूलने लगती हैं। मल्हार गीत उनके मधुर कंठ से फूट पड़ते हैं। वर्षा ऋतु का वर्णन संस्कृत और हिंदी साहित्य दोनों में हुआ है।
नदी-नाले, ताल-तलैया सभी पानी से भर जाते हैं। दादुर के टर्र-टर्र के स्वर चारों और सुनाई पड़ते हैं। वन-उपवन हरियाली से ढक जाते हैं। पेड़-पौधे हरी पत्तियों से लद जाते हैं। बादल निरंतर अपना रंग और आकार बदलते हैं। किसान खेतों में हल जोतते हैं और विशेष रूप से धान की रोपाई होती है। वर्षा ऋतु में कभी-कभी बाढ़ भी आ जाती है, जिससे खेत बह जाते हैं, फसल नष्ट हो जाती है तथा जन-धन की बहुत हानि होती है।
वर्षा ऋतु के पश्चात् शरद ऋतु है। इस ऋतु में आसमान बादलों में छिपकर नहीं रहता है। अतः उजले आसमान में दिन में धूप खिलती है और रात्रि में शुभ्र चाँदनी बिछी रहती है। नदी-नालों में पानी का अभाव नहीं रहता है। जाड़े अथवा गरमी के अधिक न होने से मौसम सुहावना और सुखद रहता है।
इस ऋतु में नवरात्र आते हैं और और दुर्गापूजन की चहल-पहल होती है। विजयदशमी का पर्व उल्लासपूर्वक मनाया जाता है।
शरद् ऋतु के बीतने पर हेमंत का आगमन होता है और जाड़ा बढ़ने लगता है। धीरे-धीरे दिन छोटे और रातें बड़ी होने लगती हैं। दिन में धूप खिलने पर जाड़ा अपने यौवन पर नहीं होता है, अतः मौसम अनुकूल होता है। रात को ओस बिखरने लगती है। पहाड़ी प्रदेशों में ठंड का प्रकोप बढ़ता है। अगहनी धान की फसल पक कर तैयार हो जाती है।
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ळेमंत ऋतु जब विदा होती है तो प्रचंड जाड़ा धरती को अपनी पकड़ में ले लेता है। रंग-बिरंगे ऊनी वस्त्र लोग पहनने लगते हैं। पहाड़ी प्रदेशों में पर्वतों की श्रृंखलाएँ श्वेत वस्त्र से विभूषित हो जाती हैं। मजदूरों और निर्धनों के लिए यह ऋतु परेशानी उत्पन्न करती है। जगह-जगह पर लोग आग जलाते हैं। इस ऋतु में दिन बहुत छोटे और रातें बड़ी हो जाती हैं। यद्यपि निर्धन लोगों के लिए यह ऋतु परेशानी उत्पन्न करती है, परंतु स्वास्थ्य की दृष्टि से यह ऋतु अच्छी मानी जाती है। इस समय पेड़ों के पत्ते झड़ जाते हैं। पुनः वसंत के आगमन की तैयारी प्रकृति आरंभ कर देती है।
पृथ्वी की वार्षिक गति के प्रभाव से ऋतु परिवर्तन होता है। ऋतु परिवर्तन के अनुसार मन की स्थिति, रहन-सहन, वस्त्र, खान-पान भी बदलता है, अतः जीवन गतिमान रहता है। वर्षा ऋतु औ वसंत तो भारत के किसान के लिए वरदान है। इस प्रकार ऋतुओं का यह चक्र परिवर्तन का पाठ भी पढ़ाता है। इसी विविधता से हमारा देश अनोखा देश कहलाता है, जहाँ प्रकृति सारी कलाओं और वैभव का प्रदर्शन करती है।