Gita Press गोरखपुर से प्रकाशित महाभारत के प्रथम खण्ड 'आदिपर्व और सभापर्व' की भूमिका में लिखा है- महाभारत आर्य-संस्कृति तथा भारतीय सनातन धर्म का एक महान ग्रन्थ तथा अमूल्य रत्नों का भण्डार है। भगवान वेदव्यास स्वयं कहते हैं ''इस महाभारत में मैंने वेदों के रहस्य और विस्तार, उपनिषदों के सम्पूर्ण सार, इतिहास पुराणों के उन्मेष और निमेष, चातुर्वर्ण्य के विधान, पुराणों के आश्य, ग्रह नक्षत्र, न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, दान, पाशुपत तीर्थों, पुण्य देशों, नदियों, पर्वतों, वनों तथा समुद्रों का भी वर्णन है।'' यहां पर आप Sampoorna Mahabharat को PDF में download कर सकते है -
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Mahabharat के रचनाकार के इस वक्तव्य से पता चलता है कि यह अत्यन्त वृहद् ग्रन्थ होगा। वास्तव में यह विश्व का सबसे लम्बा महाकाव्य है।
इसमें 18 पर्व हैं एवं सभी पर्वों सहित कुल 1948 अध्याय हैं। इसमें कुल मिलाकर एक लाख से अधिक (1,00217) श्लोक हैं। इसीलिये इसे 'शतसाहस्त्र संहिता' भी कहा जाता है। कुछ विद्वान इसके अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णनों के कारण इसे ऐतिहासिक नहीं मानते मगर इसे अनैतिहासिक भी नहीं कहा जा सकता। इसमें वर्णित कई स्थल अभी भी मौजूद हैं जो इसकी ऐतिहासिकता को प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं। आजकल अधिकांश विद्वान महाभारत युद्ध को एक ऐतिहासिक घटना मानते हुये इसकी तिथि 1400 ई. पू. से 1000 ई. पू. के बीच निर्धारित करते हैं।
प्रो. बी. बी. लाल द्वारा महाभारत में वर्णित स्थलों पर खुदाई कराई गई है। महाभारत में वर्णित ग्रहों की स्थिति के अनुसार आर्यभट्ट ने महाभारत की अनुमानित तिथि 3100 ई. पू. निर्धारित की है। इस ग्रन्थ की रचना काफी बाद में हुई। कहा जाता है कि इसकी रचना में 1000 वर्ष लगे। यह 500 ई. पू. से आरम्भ होकर 500 ई. तक चली।
महाभारत से हमें तत्युगीन सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास की एक सम्पूर्ण झाँकी प्राप्त होती है। इसमें आदर्श जीवन जीने के नियमों का संग्रह है। श्रीमद्भगवद्गीता, Mahabharat का सर्वाधिक शिक्षाप्रद भाग है। मानव की प्रत्येक समस्या का समाधान इसमें निहित है।
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भारतीय इतिहास के युगपुरूष एवं सर्वप्रमुख चरित्र महात्मा गाँधी ने लिखा है, ''जब कभी मुझे निराशा घेरती है और कहीं से कोई प्रकाश किरण नहीं मिलती है मैं अविलम्ब भगवद्गीता (
Bhagavad Gita) के पास जाता हूं। जहाँ-तहाँ कुछ श्लोकों को टटोलते ही घोर निराशा के अन्धकार में भी प्रसन्नता की एक किरण चमक उठती है।''
महाभारत एक ऐसा प्ररेणास्पन्द ग्रन्थ है जिससे शिक्षा लेकर मानव अपने उज्जवल चरित्र का निर्माण कर सकता है। वह नैतिकता के मानदण्डों को स्थापित करने में सक्षम है। इसका सकारात्मक अध्ययन हमें प्रत्येक क्षेत्र में सफलता दिला सकता है।
भगवद्गीता का सार इसके द्वितीय अध्याय के 47वें श्लोक में निहित है। जिसमें कहा गया है -
''तुम्हें मात्र अपना कर्म करने का अधिकार है। कर्म का फल क्या होगा, इस पर तुम्हारा अधिकार नहीं है। तुम्हें कर्म-फल की चाहत नहीं होनी चाहिए। तुम्हारी कर्म न करने में भी रूचि नहीं होनी चाहिये।'' अर्थात कर्मफल की चिन्ता करके उसी में डूबे रहने का अर्थ है शक्तिशाली, गतिशील वर्तमान से मुंह मोड़ना और भविष्य की कल्पना में बने रहना।