शाबर मंत्रों की साधनायें अत्यन्त सरल और शीघ्र सिद्धि देने वाली एवं अत्यंत प्रभावकारी होती हैं। वैदिक और तांत्रिक साधनाओं के समान विस्तृत विधान इन मंत्रों के नहीं होते। उन साधनाओं के समान विनियोग-न्यास आदि का समन्वय इनमें नहीं होता। न ही इनमें लंबे-चौड़े कर्मकांड होते हैं। इसलिए सामान्य सा व्यक्ति भी शाबर मंत्रों का जाप सरलता से कर सकता है। इन साधनाओं से संबंधित कुछ बिंदु ऐसे हैं जिन्हें जानना और कठोरता से उनका अनुकरण करना इसके जापकर्ता के लिए अत्यंत जरूरी है -
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इस सृष्टि के प्राणी सुख-सुविधा की आशा करते हैं। और सुख भी ऐसा जो कभी खत्म न हो। जो अनंत और नित्य पूर्ण हो। लेकिन इस भौतिक जगत में उपलब्ध सभी सुख स्थायी सुख नहीं हैं। आज जिस वस्तु की उपलब्धता से सुख मिलता है, मन जिसके आनन्द को भोगने के लिए व्यग्र हो उठता है, क्या उस वस्तु से कल भी वर्तमान जितना ही सुख प्राप्त होगा? नहीं कदापि नहीं।
तृष्णा जीव को पागल बनाये रखती है। इसलिए बड़े से बड़ा सम्राट और यहां तक कि इन्द्र बन जाने पर भी जीव अभाव और अपूर्णता का ही अनुभव करता है। प्रत्येक स्थिति में वह अतृप्त और व्याकुल रहता है। नित्यप्रति वह "और अधिक सुख" की चाह में, अनंत तलाश में लगा ही रहता है। अपने लिए "और अधिक सुख" के लिए वह चित्तानन्द और नित्य परब्रह्म का आश्रय लेने के स्थान पर इस कलिकाल में सिद्ध समझी जाने वाली दैवीय शक्तियों में का आश्रय ग्रहण करता है और काम्य कर्मों के प्रति आसक्त और लोलुप बना रहता है।
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दैवीय शक्तियों को अपने अंतःकरण से प्राप्त करने हेतु आज मंत्र-तंत्र और यंत्र सहज ही उपलब्ध हैं। इन उपकरणों का प्रभावी रूप से उपयोग करने के लिए ही मंत्र साधना तथा पुरश्चरण किये जाते हैं। यद्यपि साधना की पृथक्-पृथक् धाराएं हैं, उनके अनेकों स्तर हैं, लेकिन शाबर मंत्रों के संदर्भ में हमारा तात्पर्य मात्र काम्य प्रयोगों के लिए, उनकी सिद्धी के लिए किये जाने वाले उद्योग से है।
शाबर मंत्रों की कुछ महत्वपूर्ण बातें
- शाबर मंत्रों की साधना कोई भी प्रातःकाल या रात्रि में किसी भी समय कर सकता है, लेकिन रात्रिकाल शाबर मंत्रों के जप के लिए सबसे उत्तम है। साधक को साधनकाल में प्रयोग किये जाने हेतु लाल रंग के रेशमी अथवा सूती आसन का चुनाव करना चाहिए।
- जिन शाबर मंत्रों के प्रयोगों में मद्य, मांस आदि देवता को अर्पित करने का निर्देश हो, वहां उन्हें उनके मूल रूप में ही दिया जाता है। इनमें अनुकल्पों को प्रयोग में नहीं लाते हैं।
- शाबर मंत्रों के जप के उपरांत किये जाने वाले हवन-पूजन आदि में, जहां हवन-सामग्री का उल्लेख न हो, बाजार में बंद पैकेट में बिकने वाली साधारण सामग्री, गुग्गुल अथवा शुद्ध घी से हवन करना चाहिए।
- हवन के समय वैदिक या तांत्रिक मंत्रों की तरह मंत्र के अंत में 'स्वाहा' अलग से उच्चारित करने की जरूरत नहीं होती। चयनित मंत्र जैसे भी लिखा और जपा हो मंत्र को उसी अवस्था में बोलकर हवन में आहुति देना होता है।
- साधक को साधनाकाल में रक्षा मंत्रों की भी आवश्यकता होती है। जो साधक तांत्रिक 'कवच' आदि का पाठ करते हैं, उन्हें शाबर रक्षा मंत्रों के जप की आवश्यकता नहीं होती।
- जिन मंत्रों की साधना-विधि न दी गयी हो, उनके संबंध में किसी भी विधि का पालन आवश्यक नहीं है। भ्रमित होने की जगह अपने संतोष के लिए सामान्य विधि का विधान स्वयं कर सकते हैं।
- मंत्र का प्रयोग करने में साधक की असफलता की अनेक वजहें हो सकती हैं, जिनमें से एक उसकी ग्रह दशा भी हो सकती है। यह भी हो सकता है कि जितनी एकाग्रता और श्रद्धा की आवश्यकता उस साधना में होनी चाहिए थी, उसकी कमी रही हो। ऐसी स्थिति आने पर उचित समय देखकर पुनः उसी मंत्र की साधना की पुनरावृत्ति करनी चाहिए
- आज अहंकार से वशीभूत होकर साधक या व्यक्ति गुरुओं की उपेक्षा कर रहें हैं। जिस कारण उन्हें अभीष्ट सिद्धि ग्रहण नहीं होती। इसके साथ-साथ विद्या की भी हानि होती है क्योंकि साधना का फल न मिलने पर लोगों का विश्वास खंडित होता है। परिणामतः इस विद्या के प्रति आस्था समाप्त हो जाती है।
- शाबर मंत्र अबोध अथवा जिद्दी स्वभाव वाले शिशु की भाषा के रूप में होते हैं। इसलिए जो साधक शिशु के समान निश्छल, निष्कपट और सरल होगा, उसके मंत्र चमत्कारिक ढंग से कार्य करेंगे।