शिव महिम्न स्तोत्र संस्कृत का प्रसिद्धतम् स्तोत्र है। महेश्वर की महिमा जैसा उदात्त प्रतिपाद्य अपूर्व कथन-भंगिमा, अर्थ गाम्भीर्य तथा नाद-सौन्दर्य के मणिकांचन संयोग से यह अद्वितीय शिव स्तोत्र शताब्दियों से विद्वानों और श्रद्धालुओं को अभिभूत करता आया है। इसे सिद्ध-स्तोत्र समझा जाता है। संस्कृत का शायद ही कोई विद्वान हो जो इस स्तोत्र से अपरिचित हो। इस पर अनेकों टीकायें रची जा चुकी हैं। एक विद्वान ने सन् 1933 में इस स्तोत्र पर उपलब्ध 22 टीकाओं की सूची दी है। इसके पश्चात् इस स्तोत्र पर और भी अनेक कमेंट्री (टीका) लिखी गई हैं। -
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विभिन्न मूक भाषाओं में इसके भाषांतर भी हुए हैं।
इस स्तोत्र की प्राचीनतम उपलब्ध प्रति प्रस्तरांकित रूप में है। इंदौर शहर से करीब पचास मील दूर दक्षिण में ओंकारेश्वर (या मान्धाता) नामक एक कस्बा है। वह भारत का पूर्वकालीन एवं प्रधान तीर्थ स्थान है। वहाँ भगवान शिव का अमरेश्वर (अमलेश्वर या ममलेश्वर) नामक मंदिर है। उसकी बारह ज्योतिर्लिंगों में गणना की जाती है। ओंकारेश्वर मंदिर नर्मदा के उत्तरी नदीतट पर मौजूद है और अमलेश्वर (ममलेश्वर) दक्षिणी नदीतट पर। स्थापत्य यानी आर्किटेक्चर की दृष्टि से अमलेश्वर मंदिर अपेक्षाकृत अधिक पूर्वकालीन प्रकट होता है। जरूर पढ़ें-
शक्तिशाली शिव ताण्डव स्तोत्र (PDF)
अमलेश्वर मंदिर के सभामंडप और गर्भगृह के मध्य में एक कमरा है जिसमें दिन में भी अंधकारमय सा रहता है। इसके दाहिनी तथा बायी ओर की दीवारों पर अनेक छोटे बड़े लेख खुदे हुये हैं। इनमें विक्रम संवत् 1120 के खुदे चार स्तोत्र विशिष्ट उल्लेखनीय हैं। इनमें बायी ओर की दीवार के तले के हिस्से में 'शिवमहिम्न-स्तव' खुदा हुआ है। भट्टारक गन्धध्वज ने बड़ी सावधानी से इस स्तोत्र का प्रस्तरांकन किया है।
इस प्रस्तरांकित प्रति में 31 श्लोक हैं और समाप्ति में वर्णित हुआ है- 'इति शिव महिम्नः स्तव समाप्तमिति'। परवर्ती काल की प्रतियों में श्लोकों की गिनती 36, 40, 41, 42 और 43 तक पहुंची हुई है। संस्कृत के विख्यात टीकाकार प्रकाण्ड पण्डित श्री मधुसूदन सरस्वती ने इस स्तोत्र के 31 श्लोकों पर ही टीका यानी कामन्टेरी लिखी है। इससे लगता है कि 16 वीं सेंचुरी तक इस स्तोत्र के 31 श्लोक ही प्रसिद्ध थे।
बंबई के निर्णय सागर प्रेस से प्रकाशित इस टीका वाली प्रति में पांच अतिरिक्त श्लोक दिये गये है। निर्णय सागर के संपादक ने वर्णन किया है कि मधुसूदन सरस्वती ने सरल समझ कर टीका नहीं लिखी। संपादक ने लोकपाठ का अनुसरण कर 36 श्लोकों का स्तोत्र प्रकाशित किया है। अधिक संभाव्यता यही है कि 31 के बाद वाले श्लोक प्रक्षिप्त हैं। श्रद्धालु विद्वानों ने रचना और रचयिता के माहात्म्य और महिमा को स्तोत्र के अंत में प्रस्तुत किया या लिख दिया है।
अमलेश्वर (अमरेश्वर या ममलेश्वर) की प्रस्तरांकित प्रति में लेखक का नामकरण नहीं है। 31 श्लोकों से अधिक श्लोकों वाली प्रतियों में दिये परवर्ती श्लोकोें में एकाधिक बार पुष्पदन्त का रचयिता के रूप में नामोल्लेख हुआ है। उसे शापभ्रष्ट गन्धर्वराज बताया गया है। क्या स्तोत्र की रचना करने वाले का असली नाम पुष्पदन्त ही है या छद्म यानी Pseudo नाम है?
कश्मीर के प्रसिद्ध विद्वान जयन्त भट्ट (9वीं शताब्दी) ने अपने 'न्याय मंजरी' नामक ग्रंथ में पुष्पदन्त नामक पांडित्य पूर्ण विद्वान का ज़िक्र किया है और देवी के शाप से उसके अवनति की भी चर्चा की है।
क्या इन्हीं विद्वान पुष्पदन्त ने 'शिव महिम्न स्तोत्र' को रचा है? परवर्ती काल में सुप्रसिद्ध उपाख्यान के अनुसार पुष्पदंत के नाम का गंध्सर्वराज शिव निर्माल्य पर पांव रखे जाने के कारण अपनी अन्तर्धान शक्ति खो बैठा था। 'शिवस्तव गान' से वह पुनः प्रभु-कृपा का प्रतिनिधि बना और पूर्व का गौरव पा सका। यदि 'न्याय मंजरी' में उल्लिखित पुष्पदंत इस स्तोत्र के रचनाकार है तो निश्चय ही यह रचना नौवीं शताब्दी से भी पहले की है।
सन् 1063 तक यह शिव स्तोत्र इतना विख्यात व सुप्रसिद्ध हो चुका था कि इसे महेश्वर मंदिर में प्रस्तरांकित करना उचित समझा गया। कुछ विद्वान इस रचना को 7वीं शताब्दी से भी पहले का रचा हुआ बताते हैं, पर वर्तमान तक कोई तगड़ा साक्ष्य मौजूद नहीं है। इतना तो कतिपय अवश्य है कि 1000 बरस से भी ज्यादा से यह स्तोत्र श्रद्धालु विद्वानों को प्रसन्न एवं अभिभूत करता आ रहा है।