51 शिक्षाप्रद कहानी PDF | Moral Stories in Hindi PDF
प्यारे मित्रों, हम सदियों से अपने बच्चों को कहानियाँ सुनाते आ रहे हैं। बच्चों को कहानियाँ सुनाने में तो रूचि रखते हैं, लेकिन यदि ये प्रेरणाप्रद और नैतिकतापूर्ण
एक छोटी सी कहानी शिक्षा वाली हों तो इनका महत्व और बढ़ जाता है। यहां पर ऐसी ही नैतिक शिक्षाप्रद कहानी PDF को एक e-book में संग्रहीत किया गया है। इसमें संग्रहीत कहानियाँ बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ हैं। इस संग्रह को जरूर download करें और अपने बच्चों को सुनायें -
नैतिक शिक्षाप्रद कहानियाँ PDF
एक निवेदन: कृप्या, इन कहानियों को बच्चों को जैसा लिखा गया है वैसे ही पढ़कर न सुनायें! इन कहानियों को अपने हाव-भाव तथा शब्दों के उतार-चढ़ाव के साथ सुनायें, जिससे बच्चों को कहानी सुनने में आनंद आए तथा वे उन्हें रूचिकर लगे।
दोस्तों, आजकल के माता-पिता भागदौड़ में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें अपने बच्चों को शिक्षाप्रद कहानियाँ पढ़कर सुनाने का अवसर ही नहीं मिल पाता और यदि अवसर मिल भी जाए तो वे ऐसी शिक्षाप्रद कहानियाँ कहाँ खोजेंगे? इसी बात को ध्यान में रखकर इस कहानी-संग्रह को तैयार किया गया है, जिसे पढ़कर बच्चे लाभान्वित हो और कहानियों का आनंद लेने के साथ-साथ उनसे नैतिक शिक्षा भी प्राप्त करें।
भूल गए शैतानी
एक शहर की एक छोटी-सी गली के आखिर में एक घर था। उसमें रहते थे शैतानराम। अपने नाम की तरह ही उनके काम भी थे। हर समय सबको सताने में उन्हें बड़ा मजा आता था। उनके घर के लोग उन्हें समझाते थे। लेकिन आदत से मजबूर शैतानराम समझते ही नहीं थे। वैसे उनका असली नाम तो ‘सुंदर‘ था। लेकिन अपनी आदतों के कारण उनका नाम शैमानराम ही पड़ गया था।
एक बार की बात है, उनके घर के सब लोग कहीं बाहर गए हुए थे। शैतानराम घर में अकेले थे।
गली के एक घर में एक मुर्गी और उनके कुछ दोस्त रहते थे। शैतानराम उन्हें अक्सर परेशान किया करते थे। कभी मुर्गी को उठकार कमरे में बंद कर देते थे तो कभी मुर्गे की गर्दन में रस्सी बाँधकर उसे घुमाते थे।
मुर्ग़ा-मुर्ग़ी ने सोचा कि शैतानराम को सबक सिखाया जाए। उन्होेंने अपने कुछ साथियों से बात की। सब उनकी मदद करने को तैयार हो गए।
तो मुर्ग़ा-मुर्गी ने अपने कुछ दोस्तों को साथ लिया- वे बिल्ली, चूहा, अंडा, कैंची, सुई और गुलदस्ता को लेकर शैतानराम के घर पहुंचे।
वे सब धीरे-से घर के अंदर चले गए। घर में काई भी नहीं था। शायद शैतानराम कहीं गए हुए थे।
‘हम लोग शैतानराम का इंतज़ार करेंगे।‘ सब एक साथ बोले। बिल्ली उनकी रसोई में जाकर छिप गई। चूहा हाथ-मुंह धोनेवाले नल के ऊपर बैठ गया। अंडा उनकी तौलिया में लेट गया। कैंची सोफे के ऊपर आराम करने लगी। सुई ने उनके तकिए में अपने लिए जगह बना ली। गुलदस्ता दरवाजे़ के ऊपर जाकर बैठ गया। मुर्ग़ा और मुर्ग़ी दरवाजे के ठीक बाहर खड़े हो गए।
जैसे ही शैतानराम दूर से आते हुए दिखाई दिए, मुर्ग़ा कुकडूँ-कूँ करता हुआ घर के अंदर की तरफ भागा। उसकी आवाज़ सुनकर उसके सभी साथी सावधान हो गए। मुर्ग़ी भागी मुर्ग़े के पीछे और उनके पीछे भागे शैतानराम। मुर्ग़ा दौड़कर रसोई की ओर गया। शैतानराम उसके पीछे-पीछे जैसे ही रसोई में पहुँचे अँधेरे में बिल्ली उनके ऊपर कूदी। वे घबराकर आटे के डिब्बे में गिर पड़े।
मुंह धोने के लिए वे नल की ओर भागे। आँखों में आटा चला गया था, उनको ठीक से दिखाई भी नहीं दे रहा था। जैसे ही नल खोलने के लिए उन्होंने हाथ बढ़ाया, चूहे ने जोर से उनकी उँगली में काट लिया। दर्द से चीख़ते हुए और अपनी आँखें साफ करते हुए वे तौलिया ढूँढ़ने लगे। और जैसे ही उन्होंने तौलिए से मुंह पोंछा, अंडा उनके पूरे मुंह पर घूम गया। वे थककर सोफ़े पर जाकर बैठ गए। पर यह क्या, वहाँ तो कैंची पहले से ही उनका इंतज़ार कर रही थी। ज़ोर से चुभी तो शैतानराम उछल गए और सीधे बिस्तर पर गिरे। उनके तकिए में लगी हुई सुई उनके गाल में चुभी।
शैतानराम की हालत ख़राब थी। वे घबराकर दरवाज़े की ओर भागे। जैसे ही उन्होंने दरवाज़ा खोला, पीतल का गुलदस्ता टक से उनके सिर पर गिरा। शैतानराम बेहोश होकर वहीं गिर पड़े।
जब उन्हें होश आया तो उनका पूरा घर बिखरा हुआ पड़ा था। आज उन्हें समझ में आया था कि किसी को परेशान करने पर उसे कैसा लगता होगा।
उस दिन के बाद शैतानराम ने किसी को कभी परेशान नहीं किया। धीरे-धीरे सब उनकी शैतानियाँ भूलने लगे।
आज भी वे उसी शहर की उसी गली में रहते हैं। लेकिन अब उन्हें सब 'सुंदर' कहकर ही पुकारते हैं, शैतानराम नहीं।
डरपोक ख़रगोश
तुम जानते होगे कि ख़रगोश बड़े ही डरपोक होते हैं। एक खरगोश को अपनी डरने की आदत बहुत बुरी लगती थी। वह सोचा करता था- 'हे भगवान, आपने मुझे इतना डरपोक क्यों बनाया। ज़रा-सी आवाज़ हुई कि मैं डर जाता हूं। कोई प्यार करने के लिए भी हाथ बढ़ाए तो भी मैं डरकर छिप जाता हूं। क्यों हूं मैं इतना डरपोक? आखिर क्यों?'
उसने सोचा कि अ बवह डरेगा नहीं। उसने अपने-आपसे कहा, 'मैं बहादुर हूं। मैं डरपोक नहीं हूं।' तभी एक हल्की-सी आवाज़ हुई और खरगोश डरकर भागने लगा। आदत इतनी जल्दी ही न बदलती है।
दौड़ते-दौड़ते वह एक तालाब के किनारे पहुंचा। वहाँ कुछ मेढ़क खेल रहे थे। जैसे ही उन्होंने किसी के आने की आवाज़ सुनी, वे डरकर तुरंत पानी में कूद गए। खरगोश को तसल्ली हुई। उसने सोचा, 'चलो कोई तो है जो मुझसे भी डरता है। इसका मतलब यह हुआ कि दुनिया में सब किसी-न-किसी से डरते हैं और जो सबसे ज्यादा ताकतवर है, वह भी ईश्वर से डरता है। इसलिए अपने से ज्यादा ताकतवर जीव से डरना और सावधान रहना बुरी बात नहीं है।'
आदत से मजबूर
एक घोड़ा घास चर रहा था। तभी उसने देखा कि एक लोमड़ी उसकी ओर आ रही थी। वह लोमड़ी का स्वभाव जानता था। वह जानता था कि लोमड़ी बहुत चालाक है। इधर लोमड़ी भी यह जानती थी कि घोड़े बहुत ताकतवर होते हैं। इसलिए वह भी घोड़े को बातों में उलझाने का तरीका सोच रही थी।
घोड़ा लोमड़ी को देखकर लँगड़ा-लँगड़ाकर चलने लगा। लोमड़ी ने पूछा कि उसे क्या हुआ है? तब घोड़े ने कहा, 'ऐसा लगता है कि मेरे पैर में काँटा चुभ गया है। इसीलिए बहुत दर्द हो रहा है और चलने में मुश्किल भी हो रही है।'
लोमड़ी ने कहा, 'मैंने एक डॉक्टर से इलाज करना सीखा है। तुम्हें काफी तकलीफ हो रही होगी। लालो मुझे दिखाओं अपना पैर।'
ऐसा कहकर लोमड़ी चालाकी से घोड़े को पैर से पकड़ने के लिए झुकी। उसने सोचा कि अगर उसने घोड़े को एक बार गिरा दिया तो फिर उस पर काबू पाना आसान हो जाएगा।
लेकिन घोड़ा उससे ज्यादा समझदार था। जैसे ही लोमड़ी ने उसका पैर पकड़ना चाहा, घोड़े ने उसे एक जोरदार लात मारी। लोमड़ी हवा में उड़कर दूर जा गिरी। अब घोड़े की जगह बेचारी लोमड़ी लँगड़ा रही थी और सोच रही थी- मेरी आदत है चालाकी करना और घोड़े की आदत है लात मारना। दोनों अपनी-अपनी आदत से मजबूर हैं।
ऐसी आदतें जो कठिन समय में काम आ जाएँ क्या बुरी हैं? क्यों भाई मानते हो या नहीं?
लेकिन ऐसी आदतें तो दूसरों को तकलीफ़ पहुँचाएँ ..... कभी मत सीखना!
नई बकरियाँ
एक गड़रिये केपास बहुत सारी भेड़ें थीं। वह रोज भेड़ों को चराने के लिए घास के मैदान में ले जाता था। एक दिन शाम को जब वह वापिस लौट रहा था, तब कुछ जंगली बकरियाँ भेड़ों के साथ मिल गईं। गड़रिये ने खुश होकर सोचा कि उसकी भेड़ों का झुंड अपने-आप बड़ा हो गया है, इसीलिए उसने बकरियों को भी साथ ले लिया और वापिस आ गया।
उसने भेड़ों और बकरियों को एक साथ बाड़े में बंद कर दिया।
अगले दिन वह सुबह उठा तो बाहर बारिश हो रही थी। उसने तय किया कि वह भेड़ों और बकरियों को घर पर ही चारा दे देगा। उसके पास घास कम थी। उसने अपनी भेड़ों को थोड़-सी घास खाने की दी और बकरियों को ज्यादा। उसने सोचा कि बकरियाँ खुश होकर वहीं रूक जाएँगी।
जब बारिश रूकी तो उसने बाड़ा खोला। जैसे ही बाड़े का दरवाजा खुला, सारी बकरियाँ निकलकर भागने लगीं।
'कैसी दुष्ट बकरियाँ हैं।' गड़रिये ने सोचा, 'मैंने इन्हें अपनी भेड़ों से ज्यादा खाने को दिया फिर भी ये जा रही हैं।'
तब बकरियों में से एक पलटकर रूकी और बोली, 'तुमने हमारे लिए अपनी पुरानी भेड़ों को कम खाने को दिया। कल को यदि कुछ और नई भेड़-बकरियाँ तुम्हारे पास आ गई तो तुम हमारा भी ध्यान नहीं रखोगे।'
यह कहकर बकरी चली गई।
गड़रिए ने सोचा कि बकरी ने ठीक ही कहा था। उस दिन के बाद उसने किसी नए जानवर के लिए अपनी भेड़ों को अनदेखा नहीं किया।